BAGBAHARA

एक शिक्षक के प्रयासों की कहानी। उपलब्धियां जानकर आश्चर्यचकित हुए जिला मिशन समन्वयक

बागबाहरा। समग्र शिक्षा के जिला मिशन समन्वयक श्री अशोक शर्मा में बागबाहरा के प्राथमिक स्कूल लिटियाददर का निरीक्षण किया। स्कूल की व्यवस्था को देखते हुए शाला विकास समिति के सदस्यों से चर्चा की तो आश्चर्य जनक जानकारी मिली कि किस तरह एक शिक्षक के सोच ने गांव की तस्वीर बदल दी।


विद्यालय के प्रधान पाठक रामकरण बघेल ने बाल विकास बैक के संचालन व आय व्यय की जानकारी देते हुए बताया कि इसकी शुरुवात तत्कालिन प्रधान पाठक विजय शर्मा ने 1998 में 12 रुपये से शुरु की अब तक 2.70 लाख से अधिक राशि जमा हुई जिसमें 1 लाख विद्यालय और छात्रों के विकास में खर्च किया गया एवं 1.81लाख राशि वितरित है। जनभागीदारी की पहल ने गांव की विकास को दिशा दी। पूर्व अध्यक्ष दयाराम चन्द्राकर ने बताया कि शिक्षक विजय शर्मा के बचत बैक ने गांव की सोच को ही बदल दी, बाल विकास बैक की प्रेरणा से गांव की 16 महिला समितियों, रामायण , गणेश, दुर्गा मण्डली तथा कुर्मी, सतनामी, ठेठवार समाज के 40 लाख से अधिक राशि जमा है गांववासी आर्थिक सामाजिक, रोजगार के लिए स्वालम्बी है। वही फागु राम डहरिया ने बताया कि 2001 में आकाल की भयावहता को देखने दिल्ली की केन्द्रीय टीम ने लिटियाददर का चयन किया था, नलकूप में पानी नही आते थे,सरकार और गांव वालों ने मेचका नाला के बरसाती पानी को रोककर व पंचायत ने तालाब गहरीकरण व जल मिशन के कामो से जलस्तर काफी बढ़ा है, गांव में लगभग 30 बोर है, 40% जमीन में रबी फसल बोया गया है, खगेस यादव सब्जी की खेती से लाखों की कमाई करते हैं।

वर्तमान अध्यक्ष बाबूलाल बाघमारे ने जानकारी दी शर्मा गुरुजी ने बच्चों के लिए बैंक क्या बनाया ,हमारी सोच ही बदल दी उनके द्वारा चालू की गई बैक की समिति के सदस्यों की देखरेख में चला रहे हैं। सुशीला बाघमारे उपसरपंच भी रही,गांव में महिला सशक्तिकरण के कारण आत्मनिर्भर है, हमारा गाँव नशामुक्त है । भगवानी ने बताया निर्मल भारत अभियान में ही घर घर शौचालय, घुरूवा मुक्त गांव बना लिया था, स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं। इंद्रा चन्द्राकर ने बताया कि गांव में प्रतिदिन 200 लीटर दूध होता है गांव में ही दूध की सोसाइटी है। शिक्षक गेंद राम यादव ने जानकारी दी कि आर्थिकसुदृढ़ता से जागरूकता आयी,गांव मे शिक्षा का स्तर इससे लगया जा सकता है कि 56 लोग शासकीय सेवा या समकक्ष जैसे शिक्षक, पुलिस, इंजीनियर, स्वास्थ्य सेवा, सेना, बैंकिग, मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल्स जैसे क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं, वे खुद बच्चों को प्रेरित करते हैं। भूषण लाल यादव ने बताया कि गांव बहुत पिछड़ा था, शिक्षा का अभाव था, अब्दुल अब्बास के प्रयास से स्कूल खुला , शर्मा गुरुजी के मेहनत और लगन ने बच्चों का बैक बनाया मै अध्यक्ष की हैसियत से सहयोग कर ग्रामवासी की सहायता से आगे बढ़ाए । गांव में छोटे बड़े सब बढ़िया कमा रहे हैं, बेरोजगारी को मिलकर खतम किए। पहले गांव में दुकान नही थी आज 6 किराना, सब्जी, सायकल,इलेक्ट्रिकल, दाल, फल, कबाड़ी की दुकान से पैसा कमा रहे हैं। मछली पालन से अच्छी कमाई होती है ।
अशोक शर्मा ने गांव की सफलता पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए, शिक्षक विजय शर्मा को उसकी प्रेरणा के लिए साधुवाद दिया गांव वालों एवं शिक्षकों को शुभकामनाएं दी।


आइए जानते हैं उस शिक्षक के बारे में-


विजय कुमार शर्मा की नियुक्ति 1990 में इस स्कूल में हुई, उन्होंने गांव को अपना घर माना, भवन के अभाव में पेड़ की छाया व परछी में कक्षा लगा कर बच्चों को ऐसी शिक्षा देने में सफल रहे आज उनके पढ़ाए 50 से अधिक विद्यार्थी अच्छे पदों में सेवा दे रहे हैं, गांव के तस्वीर को बदलने उन्होंने 1998 में उनके लिखे लक्ष्य और उद्देश्य से समझा जा सकता है। उन्होंने गांव के इतिहास को पढ़ा और लिखा लिटियाददर मेरे आईने में जो सारी कहानियों को बयां करता है। वर्तमान मे प्रधान पाठक पूर्व माध्यमिक शाला कसेकेरा में अपनी सेवा दे रहे हैं, आप प्रयोगवादी व नवाचारी शिक्षक है उन्हें मुख्यमंत्री अलंकरण, राज्य सम्मान , पं मुकुटधर राज्य सम्मान, ग्लोबल अवार्ड प्राप्त है, साक्षरता के क्षेत्र में आपके नेतृत्व में विकास खण्ड बागबाहरा एवं ग्राम पंचायत मोहदी में राज्य सम्मान से नवाजा गया है। अब तक आपने 6 विद्यर्थियों को राष्ट्रीय स्तर व 16 विद्यार्थी को राज्य स्तर के लिए गाइड किया है। अपने सिर्फ पढ़ाया ही नही पढा भी है शिक्षकीय कार्य के साथ आपने इतिहास पर पीएचडी की है। आप अच्छे लेखक व इतिहासकार भी है आपकी पुस्तको का प्रकाशन छत्तीसगढ़ शासन ने किया है। कोविड काल मे आपके अभिनव प्रयोग लाउडस्पीकर शिक्षण को छतीसगढ शासन ने प्रदेश में लागू किया। स्वच्छता, साक्षरता, पर्यावरण, जन जागरूकता, सामाजिक गतिविधियों में आपका विशेष योगदान है, आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी है कलेक्टर उमेश अग्रवाल ने उन्हें साइलेंट वर्कर कहा था।

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