
संपादकीय : सवालों के घेरे में पुलिस अधिकारी त्रिपाठी की कार्यशैली ।
पिथौरा ।लोकतंत्र की बुनियाद केवल विधान या शासन नहीं है, बल्कि वह आचरण भी है जिसके आधार पर जनता अपने प्रतिनिधियों और अधिकारियों पर विश्वास करती है। यह विश्वास तभी कायम रहता है जब सत्ता और प्रशासन अपनी गरिमा, मर्यादा और सेवा-शपथ के अनुरूप आचरण करें। दुर्भाग्यवश, पुलिस अधिकारी श्री त्रिपाठी का हालिया व्यवहार इस मर्यादा को आहत करता हुआ सामने आया है।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और पुलिस का रवैया
सामने आए वीडियो में श्री त्रिपाठी न केवल जनता से भड़काऊ स्वर में संवाद करते दिखते हैं, बल्कि पत्रकारों के प्रति भी अनुचित और असंवेदनशील व्यवहार करते नज़र आते हैं। घटनास्थल पर मौजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित वरिष्ठ महिला पत्रकार शिखा दास के साथ उनका व्यवहार ने इस प्रकरण को और भी गंभीर बना दिया है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं है।
पद की गरिमा और जिम्मेदारी पर प्रश्नचिह्न
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अधिकारी श्री त्रिपाठी का रवैया आम नागरिकों के प्रति भी अनुचित रहा। उनका संवाद इस तरह था, मानो जनता उनके अधीनस्थ हो। यह केवल व्यक्तिगत दुर्व्यवहार नहीं, बल्कि उनके पद की गरिमा, सेवा शपथ और प्रशासनिक मर्यादा का उल्लंघन है। प्रश्न यह है कि जो अधिकारी जनता के साथ संयमित व्यवहार न कर सके, वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन किस जिम्मेदारी से कर पाएगा?
महिला सम्मान और सुरक्षा का पहलू
मामले का सबसे चिंताजनक पक्ष यह है कि एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार विजेता महिला पत्रकार के साथ सार्वजनिक रूप से असंवेदनशील व्यवहार किया गया। यह केवल व्यक्तिगत आघात भर नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए महिला सम्मान और सुरक्षा के सवाल को खड़ा करता है। जब खुद पुलिस अधिकारी असंवेदनशील व्यवहार करें, तो यह संदेश जाता है कि महिलाओं की सुरक्षा अब भी गंभीर संकट में है।
पत्रकारों का आक्रोश और लोकतंत्र का प्रश्न
इस घटना से पत्रकार समुदाय में व्यापक आक्रोश है।जिसके चलते पत्रकारों एवं स्थानीय जनता ने इस आचरण की तीखी निंदा करते हुए त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग शासन प्रशासन से की है। आखिर यह कैसी व्यवस्था है, जहाँ लोकतंत्र की प्रहरी पत्रकारिता को अपमानित और प्रताड़ित किया जाता है वह भी एक भट्ठा दलाल के कुकृत्यों पर कार्यवाही कीमांग करने पर ?
समाज और शासन की जिम्मेदारी
इस पूरे प्रकरण से एक गहरा सवाल उठता है — क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित महिला पत्रकार के साथ ऐसा व्यवहार उचित है? यदि पत्रकार, जो लोकतंत्र की आँख और कान माने जाते हैं, सुरक्षित नहीं हैं, तो आम नागरिकों की सुरक्षा की कल्पना कैसे की जा सकती है?समाज और शासन, दोनों की यह जिम्मेदारी है कि इस तरह की घटनाओं को केवल औपचारिक निंदा तक सीमित न रखा जाए, बल्कि दोषियों के विरुद्ध त्वरित और निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। यह केवल पत्रकारों या महिलाओं का नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र का सम्मान और विश्वास बचाने का सवाल है।
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