
व्यापारी से सांस्कृतिक शख्सियत तक—साजा निवासी बसंत अग्रवाल ने अपने दम पर गढ़ा वजूद
रायपुर । भारतीय राजनीति का रास्ता अक्सर नेताओं की चौखट से होकर गुजरता है। लोग सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए मंत्री–विधायकों की कृपा पर निर्भर रहते हैं। लेकिन रायपुर का एक चेहरा इस परंपरा से अलग है—बसंत अग्रवाल। वे आज की राजनीति के “बसंत” हैं—कुर्सी की मोह-माया से परे, आत्मविश्वास और स्वनिर्मित पहचान के प्रतीक।


उनके बारे में विचार भिन्न हो सकते हैं। कोई उन्हें सफल व्यापारी कहता है, तो कोई महत्वाकांक्षी। कोई उनके आयोजनों की सराहना करता है, तो कोई आलोचना करता है। लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि जो कुछ वे हैं, अपने दम पर हैं। उन्होंने कभी नेताओं की चौखट पर माथा टेककर अपना रास्ता नहीं बनाया।




कभी उन्होंने भाजपा के भीतर सभी को साधने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। उस असफलता को हार मानने के बजाय उन्होंने धर्म और संस्कृति का रास्ता चुना। इसी राह पर चलते हुए उन्होंने रायपुर में अपनी अलग पहचान बनाई।

आज रायपुर की जनता उन्हें केवल व्यापारी नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के सूत्रधार के रूप में पहचानती है। छत्तीसगढ़ के साजा निवासी बसंत अग्रवाल ने अब तक देश के बड़े संतों को राजधानी में आमंत्रित किया है। बागेश्वर धाम सरकार धीरेन्द्र शास्त्री जी और सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा जी की कथाएँ उनके प्रयासों से ही रायपुर में संभव हो पाईं। इन आयोजनों ने उनकी लोकप्रियता को नई ऊँचाई दी और समाज में उन्हें एक सांस्कृतिक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया।





राजनीति में यह आवश्यक नहीं कि हर कोई मंत्री या विधायक का गुणगान करे। बसंत अग्रवाल अपने आत्मविश्वास से यह साबित करते हैं कि पद और दल से ऊपर भी पहचान बनाई जा सकती है। यही कारण है कि भाजपा की राजनीति में भले ही वे किनारे खड़े दिखते हों, मगर रायपुर में उनका नाम केंद्र में गूंजता है।


सच तो यह है कि राजनीति और समाज में कोई भी पूरी तरह निर्दोष नहीं होता। अच्छाई और बुराई हर जगह मौजूद है। लेकिन यह निर्विवाद है कि बसंत अग्रवाल ने अपने वजूद को स्वयं गढ़ा है।

उनका सफर इस सच्चाई का प्रतीक है कि राजनीति में असली ताक़त कुर्सी से नहीं, बल्कि स्वनिर्मित पहचान और जनता के विश्वास से आती है। और इसी वजह से वे आज छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक अलग और मज़बूत नाम बन चुके हैं ।
वहीं उनके जानने वाले कहते है कि –
“बसंत अग्रवाल ने यह साबित कर दिया है कि राजनीति में पहचान गढ़ने के लिए न पद चाहिए, न किसी की कृपा। आत्मविश्वास और समाज का विश्वास ही असली ताक़त है।
“भाजपा की राजनीति में भले किनारे हों, लेकिन रायपुर में बसंत अग्रवाल का नाम सबसे आगे है।”
“कुर्सी नहीं, बल्कि समाज का भरोसा—यही है बसंत अग्रवाल का असली पूँजी।”
