
✍️ संपादकीय :
पिथौरा। पिथौरा के स्वास्तिक भवन स्थित ईंट भट्ठा दफ्तर में मजदूर जलंधर यादव की संदिग्ध मौत ने एक बार फिर प्रदेश में सक्रिय भट्ठा दलालों और सरदारों की काली दुनिया को उजागर कर दिया है। 35 वर्षीय जलंधर यादव का शव फर्श से पाँच फीट ऊँचाई पर बनी खिड़की से लटका मिला। उसके दोनों घुटने जमीन से सटे थे। हालात साफ कहते हैं कि यह मामला आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या की ओर इशारा करता है। परिजनों ने भी यही आरोप लगाया है। यह घटना न केवल पिथौरा बल्कि पूरे महासमुंद और आसपास जिलों में सनसनी का विषय बन गई है।

जलंधर यादव का दर्दनाक अंत
बलौदाबाजार जिले के कौहाबाहरा (रायतुम) निवासी जलंधर यादव पिथौरा के किशनपुर में अपनी माँ, पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता था। 17 सितम्बर को ईंट भट्ठा संचालक नरेंद्र राजपूत के चार गुर्गे — दो छतवन (बलौदाबाजार) और दो पिलवापाली (पिथौरा) निवासी — उसे जबरन कार में बैठाकर ऑफिस ले गए। परिजनों का आरोप है कि तीन दिन तक उसे बंधक बनाकर रखा गया और 19 सितम्बर की शाम करीब चार बजे उसका शव संदिग्ध हालात में बरामद हुआ।
पत्नी अंजली यादव ने बताया कि पिछले वर्ष जलंधर ने नरेंद्र राजपूत से 40 हजार रुपये एडवांस लिए थे। काम पर न जा पाने के चलते सरदार ने उससे 80 हजार रुपये लौटाने की माँग शुरू कर दी। परिवार पैसे का इंतजाम कर ही रहा था कि यह वारदात हुई। परिजन साफ कह रहे हैं कि जलंधर की हत्या कर शव को फाँसी पर लटकाया गया है। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है और मामले की जाँच में जुटी है।
पिथौरा थाने के सामने परिजनों ने किया चक्का जाम
वही पिथौरा थाने के सामने जलंधर के परिजनों के द्वारा चक्का जाम किए जाने की बात भी सामने आ रही है ।

ईंट भट्ठा दलाल : मजदूरों के सौदागर
महासमुंद सहित छत्तीसगढ़ के कई जिलों में सक्रिय ईंट भट्ठा सरदार — जिन्हें लोग दलाल भी कहते हैं — मजदूरों का खुलेआम सौदा करते हैं। इनका तरीका तय है :
- गरीब और कृषिहीन मजदूरों को एडवांस की रकम देना।
- कर्ज के नाम पर उन्हें अपने जाल में बाँध लेना।
- फिर उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार के ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूर की तरह भेज देना।
- इसके एवज में मोटा कमीशन वसूलना।
इस चक्रव्यूह में एक बार फँसने के बाद मजदूर और उसका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी कर्ज के बोझ तले दबा रहता है। सबसे दुखद स्थिति यह है कि पूरे परिवार — महिलाओं और बच्चों तक — को इस काम में झोंक दिया जाता है।

पंजीयन की आड़ और असली तस्वीर
भट्ठा दलाल श्रम विभाग में मजदूरों का पंजीयन कराते हैं। लेकिन असली तस्वीर कहीं ज्यादा भयावह है। जितने मजदूरों का पंजीयन होता है, उससे 10 गुना ज्यादा मजदूरों का पलायन अवैध रूप से कराया जाता है।
यह सच्चाई कोरोना काल के दौरान साफ उजागर हुई, जब लाखों प्रवासी मजदूर वापस लौटे थे। तब आँकड़ों ने बताया कि श्रम विभाग में पंजीकृत मजदूरों की अपेक्षा 10 गुना ज्यादा संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ था। बावजूद इसके, श्रम विभाग और शासन-प्रशासन ने इस खुलासे के बाद भी चुप्पी साध ली। न कोई ठोस कार्ययोजना बनी, न ही मजदूर पलायन रोकने की दिशा में गंभीर प्रयास किए गए।

मजदूर पलायन की जड़ें
छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों — महासमुंद, बलौदाबाजार, रायपुर, धमतरी और गरियाबंद — से मजदूरों और कृषिहीन श्रमिकों का पलायन लंबे समय से होता आया है। इसका सबसे बड़ा कारण यही दलाल हैं। वे गरीबों को बहला-फुसलाकर या कर्ज में जकड़कर दूर राज्यों के भट्ठों में बेचते हैं।
यह पलायन केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक त्रासदी भी है। गाँवों से पुरुषों के साथ महिलाएँ और छोटे-छोटे बच्चे भी काम के लिए निकल जाते हैं। बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते हैं और महिलाएँ अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को मजबूर होती हैं।
ऐतिहासिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
भारत में बंधुआ मजदूरी का इतिहास पुराना है। कानून बने, सुधार के दावे हुए, लेकिन हकीकत नहीं बदली। ईंट भट्ठों में मजदूरों की स्थिति गुलामी से कम नहीं। एडवांस और कर्ज के नाम पर आज भी बंधुआ मजदूरी की परंपरा जिंदा है।
बाल श्रम यहाँ सबसे भयावह रूप में दिखाई देता है। बच्चों से ईंट ढुलवाने, मिट्टी गूँथवाने और छोटे-छोटे काम करवाने की तस्वीरें आम हैं। शिक्षा का अधिकार कागजों तक सीमित है, हकीकत में वे ईंट भट्ठों के धुएँ और धूल में अपना बचपन खो देते हैं।
प्रशासन और श्रम विभाग की भूमिका पर सवाल
सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतने बड़े पैमाने पर अवैध पलायन और शोषण होते रहने के बावजूद प्रशासनिक तंत्र चुप क्यों है? क्या यह संभव है कि हजारों मजदूर बिना किसी सरकारी नजर में आए एक राज्य से दूसरे राज्य चले जाएँ?
श्रम विभाग का पंजीयन व्यवस्था केवल दिखावा बनकर रह गई है। कागजों में मजदूर सुरक्षित और पंजीकृत दिखाए जाते हैं, जबकि असल में 10 गुना ज्यादा लोग बिना पंजीयन के भेज दिए जाते हैं। कोरोना काल का अनुभव इस सच को उजागर कर चुका है, फिर भी विभाग और शासन प्रशासन आज तक आँखें मूँदे बैठे हैं।
राज्य के मुख्यमंत्री जी और श्रम मंत्री जी से सीधी अपील
आज ज़रूरत है कि इस गंभीर मामले में मुख्यमंत्री जी और श्रम मंत्री जी स्वयं हस्तक्षेप करें। केवल औपचारिक जाँच से काम नहीं चलेगा। साथ ही प्रदेश में मजदूर पलायन रोकने और भट्ठा दलालों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के लिए ठोस नीतिगत निर्णय लेने होंगे।
👉 मुख्यमंत्री जी से अपील है कि इस मुद्दे को राज्य कैबिनेट में विशेष एजेंडा बनाकर मजदूर पलायन पर राज्यव्यापी कार्ययोजना तैयार करने का कष्ट करें।
👉 श्रम मंत्री जी से अपील है कि मजदूरों के पंजीयन तंत्र को पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाए और कोरोना काल में उजागर हुई विसंगतियों पर तत्काल कार्रवाई हो,ताकि मजदूर वर्ग को राहत मिल सके।
👉 साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि मजदूरों के नाम पर चल रही दलाली और सौदेबाज़ी पर कानूनी शिकंजा कसा जाए और दोषियों पर सख्त दंडात्मक कार्यवाही की जाए।
अब और कब तक?
जलंधर यादव की मौत केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, यह पूरे मजदूर वर्ग की पीड़ा का प्रतीक है। हर साल हजारों मजदूर इसी तरह दलालों के जाल में फँसकर अपने जीवन और भविष्य से हाथ धो बैठते हैं।
अगर अब भी सरकार, प्रशासन और श्रम विभाग ने गंभीरता नहीं दिखाई, तो आने वाले दिनों में और न जाने कितने जलंधर यादव इस अमानवीय सिस्टम की भेंट चढ़ेंगे।
यह संपादकीय न सिर्फ एक संदिग्ध मौत की कहानी है, बल्कि उस पूरे तंत्र पर सवाल है जहाँ ईंट भट्ठा दलाल और सरदार मजदूरों की पीढ़ियों को बेचते हैं और प्रशासन मौन साधे बैठा है। अब समय आ गया है कि मुख्यमंत्री जी और श्रम मंत्री जी इस मुद्दे को शीर्ष प्राथमिकता दें और मजदूरों की सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित करें।
