विवाहित महिलाओं ने की पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के लिये की वट सावित्री की पूजा।
बसना। बसना विकासखंड में वट सावित्री व्रत की पूजा कोरोना संक्रमण के कारण थोड़े फीकी रही इसके बावजूद बसना नगर सहित गुढ़ियारी, टेमरी, बरबसपुर, खेमड़ा, अरेकेल, मोहका, सिंघनपुर, भूकेल बानीपाली सहित लगभग सभी गांवो के अखंड सौभाग्य, संतान प्राप्ति को लेकर रोहिणी नक्षत्र में सुहागन महिलाएं सुबह से वट सावित्री की पूजा-अर्चना की।
गांवो में तालाब किनारे बरगद के पेड़ों के नीचे सुबह से ही सुहागन महिलाएं रंग-बिरंगी परिधानों में सजी-धजी, शृंगार और पूजा सामग्री के साथ पूजा में जुटी रही।वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की मूर्ति स्थापित कर बरगद के पेड़ पर जल चढ़ाएं। इसके बाद पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ और मिठाई चढ़ाएं।
फिर वट वृक्ष के तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन या सात बार परिक्रमा किया पकवान और फल चढ़ाकर बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ महिलाएं अपनी पति के दीर्घायु जीवन और निसंतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिये पूजा अर्चना की। पूजा को लेकर महिलाओं में माहौल उत्सवी बना हुआ था। इसके बाद सामूहिक रूप से गांवो में महिलाएं मंदिरों और घरों में पंडितों से कथा सुनी।
व्रत की मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। ऐसी मान्यता है कि सावित्री के पति सत्यवान की मौत हो गई थी। अपने पति का प्राण वापस लाने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यमराज ने उनके पति के प्राण लौटा दिए थे। इसीलिए इस व्रत को वट सावित्री व्रत कहा जाने लगा।
इस दिन बरगद के वृक्ष को जल से खींच कर उसमें कच्चे सूत लपेटते हुए उनकी परिक्रमा की जाती है। जिससे पति की आयु में वृद्धि होती है। संध्या को सुहागन महिलाएं अपने-अपने घरों में देवी देवताओं के साथ अपने पति की पूजा कर फलाहार की।