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459 ज़मीनें एक ग़रीब बिहारी दंपत्ति के नाम, असली मालिक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर

459 ज़मीनें एक ग़रीब बिहारी दंपत्ति के नाम, असली मालिक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर – पिथौरा में प्रशासन की बड़ी चूक

महासमुंद (छत्तीसगढ़)।
सरकार ने वादा किया था कि ज़मीन से जुड़े काम अब पारदर्शी होंगे, ऑनलाइन होंगे और लोगों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। मगर पिथौरा से जो मामला सामने आया है, उसने इस वादे की सच्चाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

यहां एक साधारण बिहारी दंपत्ति, जो सड़क किनारे फल बेचकर अपना गुज़ारा करता है, उनके नाम पर 459 शासकीय और निजी ज़मीनें दर्ज कर दी गई हैं। हैरानी की बात ये है कि ये सब हुआ सरकारी सिस्टम में बिना किसी जांच-परख के।

इन ज़मीनों के असली मालिक अब हक के लिए दफ्तर-दर-दफ्तर भटक रहे हैं। कोई सुनवाई नहीं हो रही। सरकारी कागजों में उनका नाम तक नहीं है – वहां बस उस दंपत्ति का नाम दर्ज है, जिनकी खुद की ज़िंदगी फुटपाथ पर गुजर रही है।

सरकार की ओर से तो आदेश था कि कामों में तेजी लाई जाए, पारदर्शिता हो – लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। इस लापरवाही ने ना सिर्फ़ सिस्टम की पोल खोली है, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है, जो सालों से अपनी ज़मीन को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।

अब सवाल ये है कि क्या इस चूक की कोई जवाबदेही तय होगी? क्या असली मालिकों को उनका हक़ मिलेगा?

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