रबी फसल के धान को किसान अपनी उपज के लागत मूल्य से कम कीमत में बेचने पर मजबूर।
बसना । सरकारें कृषि क्षेत्र में आधारभूत ढांचा मजबूत करने, किसानों की आय बढ़ाने, कृषि सुधारों के साथ कृषि उपज का उचित मूल्य प्रदान करने की नीति एवं नीयत की बात करते हुये किसानों की आय बढ़ाने के लिये अपनी-अपनी प्रतिबद्धता की बात करती हैं। जबकि रबी की फसल धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदी की कोई व्यवस्था नहीं है। किसान अपनी रबी फसल को कोचिये, दुकानों और राइसमिलर्स के हाथों औने-पौने दामों में बेचने में मजबूर हैं। केंद्र और राज्य सरकार ने रबी फसलों का समर्थन मूल्य तय नही किया है ना सरकार द्वारा इसे खरीदने की व्यवस्था हैं। जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। इसके चलते अपनी उपज के लागत मूल्य से कम कीमत में बेचने पर किसान मजबूर हैं। बसना विकासखंड का कुल भौगोलिक रकबा 57609.54 हेक्टेयर हैं। जिसमें 47770 हेक्टेयर 82.92 प्रतिशत भूमि पर कृषि कार्य लिया जाता हैं। जिसमें इस सीजन 2021 में 10318 हेक्टेयर 21 प्रतिशत भूमि पर रबी की फसल की गई है। जिसमें 5563 हेक्टेयर 53 प्रतिशत भूमि में धान की खेती की गयी हैं। इस वर्ष समय पूर्व ही धान की फसल ले ली गयी थी जिसके कारण पानी की कमी नही हुई जिसके कारण धान का बेहतर पैदावार हो रही हैं। साथ ही बसना विकासखंड में धान खरीदी केंद्रों में राज्य सरकार द्वारा सत्र 2020-21 प्रति क्विंटल 2500 रुपये जिसमें 1865 रुपये समर्थन मूल्य में शेष 665 रुपये राजीव गांधी न्याय योजना के माध्यम से देने की घोषणा की हैं। केंद्र सरकार द्वारा धान लेने के इंकार के बाद बसना के धान खरीदी केंद्रों में लाखो क्विंटल धान का उठाव शेष हैं जिसे राज्य सरकार ऑन लाइन माध्यम से धान की बिक्री कर रही हैं। जिसे बसना अंचल के राइस मिलर्स 1300 से 1450 रुपये में खरीद रहे हैं। जिसके कारण धान की बम्फर स्टॉक बाजार में रहने के कारण राइसमिलर्स किसानों के धान को 1100 से 1300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मनमाने ढंग से कम कीमत पर खरीद रहे हैं। सिंघनपुर, गढ़फुलझर, भंवरपुर, क्षेत्र सैकड़ो गांव के किसानों ने बातचीत में अपना दुखड़ा व्यक्त करते हुए बताया कि इस बार हम लोग दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तो अंतिम समय में खेतों में लगे धान के फसल पर अनजान कीड़ों, बीमारी के प्रकोप के कारण धान की उपज को बड़ी मुश्किल से बचा पाये हैं। दूसरी तरफ धान का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। उस पर प्रतिवर्ष बढ़ती महंगी धान बीज, रासायनिक खाद, निदा नाशक, कीटनाशक, बिजली बिल और डीजल के दाम आसमान छू रहे है जिसके कारण खेती कार्य मे होने वाले जुताई कटाई एवं ट्रांसपोर्ट बहुत महंगी हो गयी हैं। हम किसान अपनी धान की उपज उगाने में आज लोन, कर्ज लेकर काफी पैसा लगा चुके हैं और खेती कर रहे हैं। खेती पर निर्भर रहने वाले किसान को एक ही भरोसा रहता है कि धान की अच्छी ऊपज हो लेकिन इस बार धान की अच्छी पैदावार होने के बाद भी धान की थोक कीमत 1100 से 1300 रुपये प्रति क्विंटल बेच रहे हैं। जो किसानों को लागत मूल्य से भी ऊपर नहीं हो रहा है। धान की फसल की लागत का आंकड़ा प्रति एकड़ यदि हम लेते हैं तो खेत तैयारी 500 रु, जोताई 2000 रु, नर्सरी तैयारी 500 रु, बीज 1500 रु, रोपाई 6000 रु, रासायनिक उर्वरक 3500 रु, रासायनिक दवाई 3000 रु
बिजली बिल एवं पंप खर्च 2000 रु, हार्वेस्टर 2000 रु, ढूलाई 1500 रु कुल लागत 22500 रुपये हैं। जबकि प्रति एकड़ औसतन उत्पादन बसना क्षेत्र में 20 क्विंटल हैं। जिसको 1200 रुपये प्रति क्विंटल की दर बेचने पर 24000 हजार रुपये होती है। अगर किसान अपनी और अन्य कृषि उपकरणों का खर्च जोड़ दे तो धान की खेती अब घाटे की सौदा बन गई हैं। यही कारण है कि किसान लगातार कर्ज में डूबते जा रहे हैं। जिसके कारण किसान धान के खेती के लिये लोन, कर्ज को चुकता करें कि घरेलू जरूरतों को पूरा करें। लॉक डाऊन के गंभीर परिस्थितियों में अपनी जरूरतों के साथ साथ शादी विवाह, दवाई सहित अनेक जरूरत है। मजबूरी बस किसान अपनी उपज को दुकान, राइस मिलों एवं बिचौलियों के हाथों कम कीमत पर धान बेचना मजबूरी हैं। इसी कारण किसानों की हालत दयनीय बन गई है। गांव के दुकानों में 14 से 18 किलो धान के बदले 1 किलोग्राम तेल मिलता हैं। इसी से सहज किसानों की स्थिति का आंकलन किया जा सकता है। किसानों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। वास्तव में किसानों से उपज खरीदने वालों से व्यापार में नैतिकता की अपेक्षा भर की जाती रही। कीमतों का नियमन करने की भूमिका निभाते हुए केंद्र एवं राज्य सरकार ने यह कोशिश कभी नहीं की किसानों को खुले बाज़ार और मंडी में भी उचित कीमतें मिलें तभी आज तक खुले बाजार में किसानों उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति नही अपनाई। न्यूनतम समर्थन मूल्य हमें यह सिखाया जाता है कि इसका मतलब केवल सरकारी खरीद से होता है। जबकि सच यह है कि मंडी और खुले बाज़ार में भी किसानों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए। साथ सरकार को रबी फसल धान को भी समर्थन मूल्य में लेने की अपील की है।
बसना मंडी क्षेत्र की धान सरायपाली क्षेत्र राइस मीलों में बिक रहा
वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के कारण सभी मंडियां बंद हैं जिसके कारण बसना मंडी क्षेत्र का धान सरायपाली क्षेत्र में बिकने से बसना मंडी को मंडी शुल्क से भी हाथ धोना पड़ रहा है। भंवरपुर स्थित कृषि उपज उपमंडी में धान की खरीदी नहीं होने से किसानों को सीधा नुकसान हो रहा है। मंडी प्रशासन की लापरवाही से बसना मंडी समिति को लगातार घाटा हो रहा है। रबी फसल के तहत ली गई धान की कटाई चल रही है। इस बार उत्पादन ठीक-ठाक रहने से किसानों को अच्छा मुनाफा की उम्मीद थी। लेकिन 1100 से 1300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदी हो रही है। खरीफ सीजन के धान को शासन द्वारा समर्थन मूल्य पर खरीदी की व्यवस्था किए जाने से समितियों में धान बिक जाता है। लेकिन रबी फसल का धान को बेचना सिरदर्द बन जाता है। शासन द्वारा किसानों की कृषि उपजों की खरीदी बिक्री के लिए मंडियों का निर्माण किया गया हैं। तथा इसके लिए मंडी समिति भी संचालित है। बसना मंडी क्षेत्र के अंतर्गत भंरवपुर और सिंघनपुर में उपमंडी संचालित है। लेकिन इन उप मंडियों का लाभ किसानों को सीधे तौर पर नहीं मिल पा रहा है। बसना मंडी क्षेत्र का धान सरायपाली क्षेत्र के राइस मिलरों के गोदामों में बिक रहा है। इधर व्यापारियों एवं राइसमिलर्स को घर बैठे मंडी का तौल पत्रक एवं अनुज्ञा पत्र मिल जा रहा है।
