
संवेदनहीनता : एसडीएम के आश्वासन के 48 घंटे बाद भी ‘2 किलोमीटर’ दूर पीड़ित तक नहीं पहुंचा प्रशासन
पिथौरा। प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे गरीब परिवार के प्रति सरकारी तंत्र की बेरुख़ी ने एक बार फिर मानवता को लज्जित कर दिया है। पिथौरा तहसील के ग्राम जंघोंरा निवासी बालाराम चौहान का घर बीते दिनों मूसलाधार बारिश में ढह गया — परिवार खुले आसमान के नीचे है, लेकिन प्रशासन अब तक सोया हुआ है।

सबसे हैरान करने वाला और चिंतनीय तथ्य यह है कि पीड़ित परिवार एसडीएम कार्यालय से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है।
बावजूद इसके, एसडीएम बजरंग वर्मा के स्पष्ट आश्वासन के 48 घंटे बीत जाने के बाद भी न तो पटवारी पहुँचा, न कोई राजस्व अमला, न कोई राहत सामग्री।कथनी और करनी का यह फर्क स्थानीय प्रशासन की संवेदनहीनता और तंत्र की जड़ता का जीवंत उदाहरण बन गया है।
आपदा नियमों की खुली धज्जियाँ —समाजसेवी ने निभाया मानवता का फर्ज़

जब पूरा सरकारी तंत्र मौन दर्शक बना बैठा रहा, तब स्थानीय समाजसेवी आकाश अग्रवाल ने इंसानियत का परिचय देते हुए स्वयं जंघोंरा पहुँचकर पीड़ित परिवार को ₹10,000 की तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान की।

यह कदम उस सरकारी संवेदना पर करारा जवाब है, जो आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत “त्वरित राहत” की व्यवस्था तो करती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर पूरी तरह विफल साबित हो रही है।
प्रधानमंत्री आवास योजना और राहत कोष — सिर्फ़ काग़ज़ों में सक्रिय

बालाराम चौहान का टूटा घर प्रशासनिक सुस्ती की कहानी बयां कर रहा है। जिस परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना या आपदा राहत कोष से तुरंत सहायता मिलनी चाहिए थी, उसे अब अपने हाथों से टूटी दीवारें खड़ी करनी पड़ रही हैं। यह स्थिति केवल एक गरीब परिवार की नहीं, बल्कि उस पूरे सिस्टम की पोल खोलती है जो “जनसेवा” के नाम पर सिर्फ़ फाइलें सरकाने तक सीमित हो चुका है ।
एसडीएम के निर्देशों की खुली अवहेलना — 2 किलोमीटर की दूरी भी नाप नहीं सके अफसर
यह घटना न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक है, बल्कि सीधे तौर पर एसडीएम के आदेश की अवमानना भी है।सवाल उठता है — क्या कलेक्टर महोदय इस मामले में स्वप्रेरणा से संज्ञान लेंगे? क्या उन कर्मचारियों और राजस्व अधिकारियों पर कार्यवाही होगी, जिन्होंने गरीब की सहायता में यह घोर उदासीनता और नियमों की अवहेलना की है?
“सरकार संवेदना नहीं, व्यवस्था दे” — जनता में आक्रोश
ग्रामवासियों का कहना है कि अगर सरकारी अमला इतनी सुस्त गति से चलेगा, तो “आपदा राहत” का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। महज 2 किलोमीटर की दूरी पर भी प्रशासन नहीं पहुँच सका, यह शासन की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है।
अब देखना यह है कि क्या इस घटना के बाद तंत्र की आंख खुलेगी या फिर संवेदनहीनता की यह परंपरा यूं ही जारी रहेगी।
पिथौरा प्रशासन की यह संवेदनहीनता से भरी हुई चूक न केवल एक गरीब परिवार की तकलीफ को बढ़ा रही है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर रही है कि जब 2 किलोमीटर पर भी मदद नहीं पहुँचती, तो दूरदराज़ गाँवों में रहने वाले लोगों का क्या होगा? प्रशासन की यह सुस्ती उसकी कार्यशैली पर एक सवाल की तरह नजर आ रही है, जिसने सरकारी मदद पर जनता के भरोसे को चकनाचूर कर दिया है।
