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पिथौरा वन परिक्षेत्र में हिरण की संदिग्ध मौत: मांस और सींग ले जाने की चर्चा, अधिकारियों को नहीं जानकारी

पिथौरा (छत्तीसगढ़) – पिथौरा वन परिक्षेत्र के अंतर्गत ग्राम बगारपाली में एक जंगली हिरण की संदिग्ध परिस्थिति में मौत का मामला सामने आया है। घटना में हिरण के घायल होने और फिर उसके अवशेष मिलने तक की घटनाक्रम ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो हिरण को कुछ लोगों द्वारा शिकार बनाया गया, जबकि इस मामले की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

मिली जानकारी के अनुसार, कुछ दिन पहले एक प्यासा हिरण पानी की तलाश में भटकता हुआ ग्राम बगारपाली की बस्ती तक पहुंच गया था। बताया गया है कि गांव के आसपास मौजूद कुत्तों ने उसका पीछा किया, जिससे जान बचाने के लिए हिरण भागते हुए एक खेत में जा घुसा। अगली सुबह ग्रामीणों ने खेत में हिरण के बचे हुए अवशेष देखे, जिसमें सींग गायब थी और शरीर के अन्य हिस्से भी क्षत-विक्षत थे।

स्थानीय ग्रामीणों ने इस घटना की तस्वीरें और वीडियो अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड की हैं। हालांकि, कोई भी ग्रामीण खुलकर इस विषय में बोलने को तैयार नहीं है। कुछ ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रात में कुछ लोगों ने हिरण को मारकर उसका मांस और सींग अपने-अपने घर ले गए, जबकि बची हुई हड्डियों को वहीं खेत में छोड़ दिया गया, जिन्हें बाद में कुत्तों ने नोंचकर खा लिया।

घटना की जानकारी कथित तौर पर पिथौरा के कुछ पत्रकारों को भी दी गई थी। इन पत्रकारों की टीम मौके पर पहुंची, लेकिन जैसे ही मामला गर्माने लगा, जिन लोगों ने हिरण का सींग अपने पास रखा था, उन्होंने कथित तौर पर उसे वापस घटना स्थल पर लाकर रख दिया।

इस पूरे मामले में वन विभाग के एक सुरक्षाकर्मी की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि इस सुरक्षाकर्मी ने मौके पर पहुंचे पत्रकारों को घटना का खुलासा न करने के एवज में भारी रकम दी है।

जब झोल्टूराम डॉट कॉम ने इस विषय में पिथौरा के वन परिक्षेत्र अधिकारी सालिकराम डडसेना से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं है।

गौरतलब है कि इससे कुछ समय पहले भी पिथौरा वन परिक्षेत्र के ग्राम बुंदेली में हिरण के शिकार की एक घटना सामने आई थी। उस मामले में झोल्टूराम डॉट कॉम द्वारा खबर प्रकाशित किए जाने के बाद वन विभाग ने एक शिकारी के खिलाफ कार्रवाई की थी।

इस तरह की घटनाएं वन्यजीव सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती हैं और वन विभाग की भूमिका पर सवाल उठाती हैं।

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