
आखिर स्व.पत्रकार उमेश राजपूत के हत्यारे अब क्यों नहीं गिरफ्तार हुए?
आखिर स्व.पत्रकार उमेश राजपूत के हत्यारे अब क्यों नहीं गिरफ्तार हुए?
उनके परिजनों को आखिर 11 साल बाद भी क्यों नहीं मिल पाया न्याय?
क्या इस हत्याकांड के पीछे कोई प्रभावशील लोगों का है हाथ?
छुरा, गरियाबंद… यह घटना 23 जनवरी 2011 की है जब नई दुनिया के पत्रकार उमेश राजपूत शाम लगभग 6.30 बजे अपने आमापारा छुरा स्थित निवास में समाचार लिख रहे थे। उस वक्त उसके साथ एक और पत्रकार साथी उनके साथ मौजूद थे साथ ही उनके साथ घर पर विमला बाई,कु.पुनम, काम करने वाली संगीता, शिव कुमार वैष्णव का पुत्र विकास मौजूद थे। संगीता की मानें तो एक व्यक्ति आया जिसके हाथ में एक गोल पेपर का बंडल जैसे रखा था मुंह में स्कार्फ ढंका था उसने पुछा कि उमेश राजपूत है क्या जिस पर संगीता ने उमेश से कहा कि कोई आये हैं आपको पुछ रहे हैं, जिस उमेश बाहर निकल रहे थे और धांय से आवाज आई,आखिर सवाल यह उठता है कि शाम के समय कपड़े के पर्दे से उमेश बाहर नहीं निकला था और पर्दे पर हत्यारे के द्वारा गोली चलाई गई जिससे कपड़े का पर्दा छलनी हो गया और उमेश वहीं कमरे में गिर पड़े,क्या हत्यारे उसके कद काठी को पहचानता था कि उस पर गोली चलाई गई? क्योंकि उस समय घर पर पांच और भी लोग मौजूद थे जिसमें कोई भी बाहर निकल सकता था उस आये हुए ब्यक्ति को अंदर बुलाने।




दुसरा सवाल खड़ा होता है कि घटना स्थल पर एक पर्चा मिला था जिसमें लिखा गया था कि”उमेश राजपूत आप समाचार छापना छोड़ दो और छुरा छोड़ कर चले जाओ नहीं तो मरे जाओगे” आखिर छुरा में उसके रहने से किसको तकलीफ हो रही थी क्या कोई छुरा निवासी को? बाहर के लोगों को छुरा में उमेश के रहने या नहीं रहने से क्या तकलीफ थी?
उनके हत्या के बाद परिजनों को ये भी पता नहीं है कि उमेश के फोन में उस दिन किस किस ब्यक्ति का फोन आया गया कौन उसके जान पहचान के थे और कौन नहीं थे और नहीं घटना के बाद उनके मोबाइल को परिजनों को दिखाया गया।
शाम के समय घटना हुआ रिहायशी इलाके में उमेश राजपूत का घर है शाम को लोग छत और गली में टहलते हैं घटना के वक्त पांच और भी लोग मौजूद थे पर किसी ने हत्यारे को क्यों नहीं देखा क्या हत्यारा वहीं आसपास का था या सामने ही किसी के घर में शरण ली?
इस हत्याकांड के कुछ गवाहों की मृत्यु भी हो गई, जैसे राजू पाण्डे, शिव कुमार वैष्णव, कई जांच आफिसर आये गए, सरकारें आई गयीं, पुलिस प्रशासन ने चार साल तक जांच की लगभग आठ सालों से देश की सबसे बड़ी जांच ऐजेंसी के पास यह केस चल रही है,कुछ संदिग्धों का अहमदाबाद से ब्रेन मेपिंग भी कराया गया, किंतु हत्यारे नहीं पकड़े गए। उमेश राजपूत की मां की भी इस घटना के जांच के बीच मृत्यु हो गई। उनके छोटे भाई अभी भी सीबीआई कोर्ट के चक्कर लगाने मजबूर हैं। इस हत्याकांड के कुछ साक्ष्य भी थाना छुरा से गायब मिला, क्या यह घटना भी देश के वीर सिपाही सुभाष चन्द्र बोस की घटना की तरह राज बनकर रह जायेगी या सामने आ पायेगी?
क्या इस हत्याकांड के अपराधी इतने प्रभावशील हैं कि 11 साल बाद भी कानून के हाथ उनके गिरेबान तक नहीं पहुंच पाई , लोगों और परिजनों के बीच यह सबसे बड़ा सवाल है।