
उड़ीसा का धान छत्तीसगढ़ में खपाने का बड़ा खेल! भुरकोनी के व्यापारी, और पंचायत प्रतिनिधि की मिलीभगत से सरकारी भवन में रखा गया था अवैध धान…. सूत्र
धान खरीदी को प्रभावित करने की रची जा रही है साजिश

महासमुंद।धान खरीदी सीजन शुरू होने से पहले ही छत्तीसगढ़ में बाहरी राज्यों के धान को खपाने का खेल शुरू हो गया है। सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के अनुसार उड़ीसा से आया करीब 1500 कट्टा धान महासमुंद जिले के पिथौरा विकासखंड अंतर्गत भुरकोनी के पास स्थित ग्राम जगदल्ला जिसे भुरकोनी का पारा भी कहा जाता है स्थित रंगमंच और कुम्हारपारा के रंग मंच में अवैध रूप से रखा गया था।
बताया जा रहा है कि यह धान भुरकोनी निवासी एक बड़े व्यापारी का है, जिसके पास पहले से ही 35 एकड़ से अधिक कृषि भूमि है। हैरानी की बात यह है कि इस अवैध धान के खेल में एक शासकीय कर्मचारी (गुरुजी) का नाम भी सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, संबंधित शिक्षक के घर और ब्यारा स्थित गोदाम में भी हजारों कट्टा धान रखे होने की सूचना प्राप्त हो रही है।
रंगमंच भवन बना धान गोदाम!
सूत्र बताते हैं कि ग्राम जगदल्ला के रंगमंच भवन तथा कुम्हार पारा रंगमंच में लगभग 1500 कट्टा धान खाली होने की सूचना मिली थी, जिसमें से लगभग 300 बोरा भरी हुई अवस्था में था, जबकि बाकी धान को बोरों से निकालकर ढेरी (ढालकर) के रूप में जमा किया गया था।
वहीं कुम्हरपारा के रंगमंच भवन में जो धान का भंडारण किया गया था*, उसे बाद में रातों-रात गायब कर दिया गया।
तीन गाड़ियों में भरकर आया था धान
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, तीन गाड़ियों में ठसाठस भरा हुआ धान 3 नवंबर को उड़ीसा से यहां लाया गया था, जिसकी मात्रा लगभग 1500 बोरा बताई जा रही है। मंडी क्षेत्र के भीतर आने के बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में धान का प्रवेश कैसे हुआ, यह अपने आप में बड़ा सवाल है।
मंडी विभाग की भूमिका पर सवाल
जानकारी के अनुसार, धान जप्त करने की कार्यवाही राजस्व प्रशासन के अधिकारी एवं कर्मचारियों के द्वारा की गई है।जब मंडी विभाग की टीम ने राजस्व प्रशासन से सुपुर्दनामा के तहत जप्त किए गए धान को प्राप्त तो किया तो लेकिन उनके द्वारा बिना सील खोले ही मात्र 300 कट्टा धान जप्त बताया।
अब सवाल यह उठता है कि जब लगभग1500 कट्टा धान आया था, तो मंडी विभाग ने केवल 300 कट्टा का ही अनुमान क्यों लगाया? क्या यह कार्यवाही महज औपचारिकता थी?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि व्यापारी और मंडी विभाग के कुछ अधिकारियों कर्मचारियों के बीच मिलीभगत के चलते बड़ी मात्रा में धान को “अवैध” से “वैध” बताने की कोशिश की जा रही है।
सरपंच की भूमिका संदिग्ध
मामले में सबसे बड़ा सवाल ग्राम पंचायत के सरपंच की भूमिका पर उठ रहा है। बताया जा रहा है कि सरपंच ने बैक डेट में धन रखने का अनुमति जारी कर, रंगमंच भवन में धान रखने की मंजूरी का कागज प्रस्तुत किया है।
जबकि राजस्व प्रशासन ने जब धान को जप्त करने की कार्यवाही की थी उसे दौरान सरपंच ने इस मामले में अभिज्ञता जताई थी ।
सवाल यह है कि – सरपंच को किस अधिकार से उड़ीसा से लाए गए धान के भंडारण की अनुमति देने का अधिकार है?
स्पष्ट है कि यह मंडी विभाग द्वारा बताई जा रही कार्यवाही पूरी तरह कानूनी नियमों और प्रशासनिक मर्यादाओं के विपरीत है।
प्रशासन से सख्त कार्यवाही की मांग
स्थानीय कृषकों ने इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग किए जाने की बात सामनेआ रही है।लोगों का कहना है कि मंडी विभाग, पंचायत प्रतिनिधि और व्यापारी— तीनों की मिलीभगत से उड़ीसा का धान छत्तीसगढ़ में खपाने की साजिश रची जा रही है, जिससे राज्य सरकार की खरीद नीति और स्थानीय किसानों के हितों को सीधा नुकसान पहुंचेगा।
अंतिम सवाल
लगभग 1500 कट्टा धान में से केवल लगभग300 ही जप्त क्यों दिखाया गया?वह भी बिना सील खोले अनुमान करते हुएजबकि मंडी कर्मचारियों ने इसकी गिनती भी नहीं की है । बाकी धान रातों-रात कहां गायब हुआ?
क्या मंडी विभाग और व्यापारी के बीच कोई “सेटिंग” है? और क्या ग्राम पंचायत के पदाधिकारी भी इस धान घोटाले के हिस्सेदार हैं?
अब जरूरत है कि प्रशासन मामले को दबाने के बजाय निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कठोर कार्यवाही करे, ताकि बाहरी राज्यों के धान को छत्तीसगढ़ में खपाने की इस अवैध परंपरा पर पूरी तरह से लगाम लग सके।
टीप – यह संपूर्ण समाचार सूत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तथा प्रत्यक्षदर्शियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है ।
इस समाचार के भाग दो एवं लेटेस्ट अपडेट के लिए पढ़ते रहिए The Hawker News.





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