cgnews

“कोमाखान में संघ का शताब्दी विजयादशमी उत्सव — अनुशासन, संगठन और राष्ट्रभक्ति का जीवंत प्रतीक”

संपादकीय – डॉ भास्कर राव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम आते ही मन में जो पहली छवि उभरती है, वह है — अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और संगठन का अद्भुत संगम। बुधवार को कोमाखान में संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर मनाया गया विजयादशमी उत्सव उसी भावना का एक प्रेरक उदाहरण बनकर सामने आया। नगर में निकला यह भव्य पथ संचलन न केवल संघ के अनुशासन और एकजुटता का दर्पण था, बल्कि इसने यह संदेश भी दिया कि राष्ट्र निर्माण में समर्पित व्यक्तियों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है।

संघ के छह प्रमुख उत्सवों में से एक – विजयादशमी का ऐतिहासिक महत्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने छह प्रमुख उत्सवों में विजयादशमी को विशेष स्थान देता है। यह दिन संघ का स्थापना दिवस होने के साथ-साथ धर्म, सत्य और नैतिकता की विजय का प्रतीक भी है। कोमाखान मंडल द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम मात्र एक पारंपरिक उत्सव नहीं, बल्कि शताब्दी वर्ष की ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में दर्ज किया जाएगा।इस आयोजन में क्षेत्र के सभी गांवों के स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लेकर न केवल संगठन के प्रति अपनी निष्ठा दर्शाई, बल्कि समाज के सामने एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया कि संगठन और अनुशासन ही सशक्त भारत की नींव हैं।

अनुशासित पथ संचलन बना आकर्षण का केंद्र

दोपहर 2 बजे कोमाखान मंडी प्रांगण से प्रारंभ हुआ पथ संचलन घोष की सुमधुर धुन पर जब नगर की सड़कों से गुजरा, तो वातावरण में राष्ट्रभक्ति की लहर दौड़ गई। कोमाखान बस्ती, बस स्टैंड और बाजार चौक जैसे प्रमुख मार्गों से गुजरते स्वयंसेवकों का अनुशासित कदमताल नागरिकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना।नगरवासियों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा कर स्वयंसेवकों का स्वागत किया। यह दृश्य केवल एक शोभायात्रा नहीं, बल्कि एक जीवंत संदेश था — राष्ट्र की सेवा केवल भाषणों से नहीं, बल्कि अनुशासित कर्म और समर्पण से होती है।

बौद्धिक सत्र में गूंजा राष्ट्रसेवा का संदेश

पथ संचलन के उपरांत मंडी प्रांगण में आयोजित बौद्धिक कार्यक्रम इस उत्सव का बौद्धिक केंद्र बिंदु रहा।मुख्य अतिथि चिकित्सक अरुण शुक्ला ने अपने संबोधन में संघ की शताब्दी यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि — “संघ ने अपने 100 वर्षों के इतिहास में अनेक प्रतिबंधों, विरोधों और कठिनाइयों का सामना किया, परंतु राष्ट्र सेवा के अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं हुआ।” उनका यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि संगठन की शक्ति केवल संख्या में नहीं, बल्कि विचार और निष्ठा में निहित होती है।मुख्य वक्ता शैलेश अग्रवाल (जिला बाल कार्य प्रमुख) ने अपने प्रभावी उद्बोधन में संघ की कार्यपद्धति की व्याख्या करते हुए कहा कि —“जिस प्रकार एक-एक बूंद मिलकर समुद्र का निर्माण करती है, उसी प्रकार हर स्वयंसेवक के प्रयास से संघ रूपी विशाल संगठन खड़ा हुआ है।”

उन्होंने विजयादशमी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पर्व अच्छाई की जीत और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है — और संघ इसी परंपरा का पालन करते हुए देशभर में शिक्षा, स्वास्थ्य, समाजसेवा, पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्र जागरण के कार्य कर रहा है।

नागरिकों का उमड़ा जनसैलाब पुष्पवर्षा से हुआ स्वागत

कोमाखान में इस अवसर पर देखने लायक दृश्य था। नगर के प्रमुख मार्गों पर नागरिकों की भीड़ उमड़ पड़ी। बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग — सभी उत्साहपूर्वक इस दिव्य संचलन के साक्षी बने।जहां-जहां पथ संचलन पहुंचा, वहां पुष्पवर्षा और जयघोष के साथ स्वयंसेवकों का अभिनंदन किया गया। नेता, अधिकारी, व्यापारी, सामाजिक कार्यकर्ता सभी इस ऐतिहासिक आयोजन में शामिल हुए। यह नज़ारा केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन का नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण का प्रतीक था।

शताब्दी वर्ष — आत्ममंथन और नवसंकल्प का अवसर

संघ के लिए यह विजयादशमी केवल उत्सव नहीं, बल्कि *शताब्दी वर्ष का आत्ममंथन* भी थी।पिछले सौ वर्षों की यात्रा में संघ ने राष्ट्र सेवा के विविध आयामों को छुआ है — शिक्षा से लेकर आपदा प्रबंधन तक, सेवा बस्तियों से लेकर पर्यावरण अभियान तक — संघ की उपस्थिति समाज के हर स्तर पर महसूस की जा सकती है।कोमाखान मंडल का यह आयोजन उसी सेवा परंपरा का जीवंत प्रमाण था, जिसने स्वयंसेवकों को राष्ट्र निर्माण की दिशा में और अधिक निष्ठा व समर्पण से आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

संपादकीय टिप्पणी

आज जब समाज में भौतिकता, स्वार्थ और विभाजन की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुशासन और संगठनबद्धता एक प्रेरक उदाहरण के रूप में सामने आती है। कोमाखान का यह विजयादशमी उत्सव केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह संदेश देता है कि संगठन, सेवा और संस्कार ही भारत की आत्मा हैं।स्वयंसेवकों की गणवेशधारी कतारें जब घोष की लय पर कदमताल करती हैं, तो वह केवल एक दृश्य नहीं, बल्कि एक विचार का संचार होता है — ‘हम सब एक हैं, राष्ट्र सर्वोपरि है।’संघ के शताब्दी वर्ष का यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बनेगा, और यह स्मरण कराएगा कि राष्ट्र सेवा का कोई अंत नहीं, वह सतत चलने वाली साधना है।

कोमाखान में मनाया गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी विजयादशमी उत्सव अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और संगठन की अद्भुत मिसाल बनकर सामने आया। पुष्पवर्षा से सजे मार्ग, घोष की गूंज, अनुशासित कदमताल और प्रेरक उद्बोधनों ने यह साबित कर दिया कि संघ केवल संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की एक जीवंत धारा है।

नीचे देखिए –

डॉ.भास्कर राव पांढरे

डॉ.भास्कर राव पांढरे वर्ष 2010 से पत्रकारिता जगत से जुड़े हुए हैं । इन्होंने विभिन्न समाचार पत्रों में सह संपादक के पद पर अपने दायित्वों का व निर्वहन किया है ।2023 की विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ के विभिन्न विधानसभाओं में जनता का अभिमत जानने के लिएजननायक कार्यक्रम लेकरपहुंचे थे , जो विधानसभा चुनाव के दौरान बहुत लोकप्रिय हुआ था । वर्तमान में यह The Howker News के प्रधान संपादक के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
YOUTUBE
Back to top button