
साहित्यकार डुमन लाल ध्रुव की किताब छत्तीसगढ़ का लोक आभूषण का हुआ विमोचन
शिक्षा, साहित्य, संस्कृति के क्षेत्र में विभूतियों का हुआ सम्मान
आभूषण लोक संस्कृति और परम्पराओं का जीवंत इतिहास है – डॉ.चित्तरंजन कर
धमतरी। साहित्य संगीत सांस्कृतिक मंच मुजगहन (धमतरी) , जिला हिन्दी साहित्य समिति धमतरी,साहित्य कला संस्कृति की बहुआयामी संस्था चिन्हारी भिलाई, प्रेरणा साहित्य समिति बालोद, नेहरू युवा केन्द्र,फ्रीडम एकेडमी,शास्वत उपसर्ग नाट्य संस्था द्वारा साहित्यकार डुमन लाल ध्रुव के जन्मदिन के अवसर पर साहित्य सदन मुजगहन (लोहरसी रोड, धमतरी) में पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का भव्य आयोजन किया गया।

इस अवसर पर वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित श्री ध्रुव की कृति “छत्तीसगढ़ के लोक आभूषण” का विमोचन किया गया। विमोचन के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं भाषाविद् डॉ. चित्तरंजन कर (रायपुर) रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता से.नि. प्राचार्य डॉ. चन्द्रशेखर चौबे (धमतरी) ने की। कृति पर समीक्षात्मक वक्तव्य प्रख्यात आलोचक डॉ. जयप्रकाश साव (दुर्ग) एवं हिन्दी अध्ययन मंडल, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की अध्यक्ष डॉ. कविता वैष्णव ने प्रस्तुत किए। विशेष अतिथि के रूप में से.नि. प्राचार्य डॉ. एस.एस. ध्रुर्वे, उपन्यासकार श्री दुर्गा प्रसाद पारकर, साहित्यकार श्री द्रोण कुमार सार्वा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण से किया गया। तत्पश्चात् अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान किया गया।
समारोह में साहित्य, शिक्षण एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान देने वाले तीन विभूतियों का विशेष सम्मान किया गया। इनमें डॉ. स्वामी राम बंजारे (से.नि. हिन्दी विभागाध्यक्ष, शासकीय भानुप्रतापदेव महाविद्यालय कांकेर), सुप्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती नम्रता सिंह (खैरागढ़) तथा शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले श्री हेमन्त गिरी गोस्वामी (से.नि. प्रधानपाठक) शामिल हैं। उन्हें अभिनंदन पत्र, शाल एवं श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया।
पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह के अवसर पर सुप्रसिद्ध भाषाविद एवं साहित्यकार डॉ. चित्तरंजन कर ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लोक आभूषण केवल आभूषणों की सूची नहीं बल्कि यहां की लोकसंस्कृति और परंपराओं का जीवंत इतिहास है। यह कृति सांस्कृतिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रखने में सहायक होगी।
देश के प्रख्यात आलोचक डॉ. जयप्रकाश ने अपने समीक्षात्मक वक्तव्य में कहा कि ध्रुव जी ने इस पुस्तक के माध्यम से लोकजीवन के उन पहलुओं को रेखांकित किया है जिन्हें अकादमिक विमर्श में अब तक पर्याप्त स्थान नहीं मिला था। शोध के दृष्टिकोण से यह कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हिन्दी अध्ययन मंडल पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की अध्यक्ष डॉ. कविता वैष्णव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह ग्रंथ छत्तीसगढ़ी नारी जीवन, उसकी सज्जा और उसकी संवेदना को गहराई से प्रकट करता है। साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्येताओं के लिए यह एक सशक्त स्रोत है।
श्री द्रोण कुमार सार्वा ने कहा कि यह कृति छत्तीसगढ़ की लोकधारा और जनजीवन के सौंदर्यबोध को प्रस्तुत करती है। इसमें लोकगीतों और लोककथाओं की छवियां भी झलकती हैं।
उपन्यासकार दुर्गा प्रसाद पारकर ने कहा कि डुमन लाल ध्रुव की लेखनी लोक और शास्त्र के बीच सेतु का कार्य करती है। यह कृति उसी परंपरा का प्रमाण है।
डॉ. एस.एस. ध्रुर्वे ने कहा कि आभूषणों का लोकजीवन से सीधा संबंध है। ध्रुव जी ने अपने अध्ययन से यह स्पष्ट किया है कि आभूषण केवल सौंदर्य का साधन नहीं बल्कि लोकमानस की भावनाओं और सामाजिक प्रतीकों के संवाहक भी हैं। छत्तीसगढ़ी गीतों और लोककथाओं में आभूषणों का उल्लेख बार-बार आता है। यह पुस्तक उन काव्यात्मक प्रतीकों को शास्त्रीय आधार देती है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. चन्द्रशेखर चौबे ने कहा कि डुमन लाल ध्रुव ने अपनी रचनाशीलता से छत्तीसगढ़ी संस्कृति को वैश्विक संदर्भों तक पहुंचाने का कार्य किया है। उनकी यह कृति शोध, साहित्य और संस्कृति तीनों क्षेत्रों में उपयोगी साबित होगी।
कार्यक्रम का संचालन जयकांत पटेल आभार हीरालाल साहू ने किया। अंत में देश के सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि स्व. सुरजीत नवदीप जी को उपस्थित साहित्यकारों ने दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की
। इस गरिमामय समारोह में मुख्य रूप से हीरालाल साहू, द्वारिका प्रसाद तिवारी,पवन प्रेमी,जे.एल. साहू,जोहत राम नेताम, हरिशंकर ध्रुव,किरण साहेब, चन्द्रशेखर शर्मा, डॉ. भारती गुरुनाथ राव, डॉ. भूपेन्द्र सोनी, दीपचंद भारती,डॉ. रचना मिश्रा, लक्ष्मण हिन्दूजा,आकाश गिरी गोस्वामी, भूपेन्द्र मानिकपुरी, लोकेश प्रजापति,अमित नूनिवाल, नवजोत सिंह, शैलेंद्र पारकर, कुलेश्वर प्रसाद निषाद,मदनमोहन दास, शिल्पा मानिकपुरी,मीना ध्रुव,दिव्या ध्रुव,वीणा ध्रुव,ललिता ध्रुव, गीतांजलि साहू,सूरज साहू, आर्यन सोनकर, लोकेश साहू, रामसिंग मंडावी, कमलेश पांडे,जनक नंदिनी साहू, गुरुशरण साहू, हेमलाल ध्रुव,राजकुमार सिन्हा, रामकुमार विश्वकर्मा, सुरेश साहू,खिलेद्र साहू,खुमान ध्रुव सहित विभिन्न साहित्य संगठनों से जुड़े उपस्थित थे।
