
पिथौरा राइस मिल में छापा: 6000 कट्टा धान गायब, डीओ एडजस्ट के खेल की आशंका…..
शासन को हर साल लग रहा करोड़ों का चूना, आपसी मिलीभगत से पनप रहा ‘धान घोटाला उद्योग’
🔎 घटनाक्रम का विस्तार
पिथौरा के एक राइस मिल में विपणन विभाग की टीम ने कलऔचक छापा मारकर भारी मात्रा में अनियमितताओं का खुलासा किया। प्रारंभिक जांच में लगभग 6000 कट्टा धान की कमी दर्ज की गई है। इस कार्रवाई से जहां स्थानीय प्रशासन में हड़कंप मच गया है, वहीं वर्षों से चल रहे “डीओ एडजस्ट” के खेल की परतें भी एक बार फिर खुलने लगी हैं।
🧾 क्या है डीओ एडजस्ट का खेल?
डीओ यानी डिलीवरी ऑर्डर—यह वह सरकारी दस्तावेज होता है जिसके माध्यम से सरकार के द्वारा समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान को कस्टम मिलिंग के लिए राइस मिलों में भेजा जाता है और मिलर उसे चावल में कन्वर्ट करके शासन को लौटाते हैं।
लेकिन कई मिल संचालक धान खरीदी केंद्र प्रभारियों से मिलीभगत कर डीओ एडजस्टमेंट का खेल खेल कर गड़बड़ी करते हैं।
- सरकारी रिकॉर्ड में सब ‘फिट’ होता है, लेकिन भौतिक जांच में खेल उजागर होता है।
- इससे हर साल शासन को करोड़ों रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है।
🧑💼 जांच टीम की कार्यवाही
- छापा मारने वाली टीम का नेतृत्व विपणन अधिकारी ने किया।
- मौके पर पहुंचकर मिल में मौजूदा स्टॉक और सरकारी रिकॉर्ड का मिलान किया गया।
- जांच में लगभग 6000 कट्टा धान की कमी सामने आई।
📌 पिछला ट्रैक रिकॉर्ड
यह कोई पहली घटना नहीं है।
- 2020, 2022 और 2023 में भी पिथौरा, बागबाहरा, और सरायपाली क्षेत्र के कई मिलों पर तथा धान खरीदी केंद्रों पर इसी तरह के छापे पड़े थे।
- लेकिन कोई कठोर कार्यवाही नहीं हुई।
- अधिकांश मामलों को जांच के नाम पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
🤝 किसकी मिलीभगत?
जांच की शुरुआती रिपोर्ट यह इशारा करती है कि:
- धान खरीदी केंद्र प्रभारी और राइस मिल संचालक के बीच गठजोड़ रहा है।
- इसी गठजोड़ के चलते शासन को प्रतिवर्ष अरबों रुपए का चुना लगता है ।
- वहीं धान खरीदी केंद्र प्रभारी को बचाने के लिए कुछ अधिकारी एवं कर्मचारी सांठ गांठ कर लेते हैं ।
- ऐसा ही डीओ एडजस्टमेंट का मामला पिथौरा क्षेत्र के धान खरीदी केंद्र पर भी उठा था ,जो समाचार पत्रों एवं न्यूज़ चैनलों की सुर्खियों में था.लेकिन अभी तक उसे मामले के कई दोषी प्रशासन की पकड़ से बाहर है.
📉 शासन को भारी आर्थिक नुकसान
- प्रत्येक कट्टा धान का बोनस की राशि के साथ प्रति क्विंटल कीमत₹3100 है , तो 6000 कट्टों का नुकसान = ₹ 74 लाख से अधिक।
- इसके बाद ट्रांसपोर्टिंग के नाम पर लोडिंग अनलोडिंग के नाम पर जो बचता है वह अलग ।
- पूरे जिले में 50 से अधिक मिलें संचालित हैं, अब आप हिसाब लगा लीजिए ….
- कस्टम मिलिंग करके शासन को जो मिल चावल वापस नहीं करते अधिकतर उनको ब्लैक लिस्ट करके जुर्माना लगाया जाता है ।
- जबकि ऐसे कृत में संलिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए ।
🗣️ जनता और किसानों में आक्रोश
- किसान संगठनों ने विपणन विभाग के द्वारा की गई इस कार्यवाही का स्वागत किया है लेकिन सवाल उठाया है कि “कब तक ये खेल चलता रहेगा?”
⚖️ अब आगे क्या?
- विपणन विभाग ने जांच रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को सौंप को सौंप दी जायेगी ।
- उचित जांच होने पर कार्यवाही किए जाने व मामला दर्ज करने की सिफारिश भी होगी ।
- यदि प्रशासन और शासन सख्ती दिखाए, तो यह केस एक मॉडल केस बन सकता है, जो आने वाले वर्षों में इस प्रकार के कृत्य में संलिप्त लोगों को सबक मिलेगा।
- लेकिन यदि इसे भी “जांच जारी है” कहकर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, तो यह कार्रवाई भी सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाएगी।
पिथौरा के राइस मिल में पकड़ा गया यह खेल महज एक बानगी हो सकता है, असल गहराई में जाएं तो पूरा सिस्टम कागजों की खानापूर्ति पर टिका है। शासन को अब यह तय करना होगा कि वे कागजी खानापूर्ति की नीति पर चलेंगे या ईमानदार जांच और कठोर कार्यवाही की मिसाल पेश करेंगे।
देखते हैं अब आगे क्या होगा?
जुड़े रहिए, अगले अंक में पढ़िए:
- कैसे होता है डीओ एडजस्ट ?
- किन-किन राइस मिलों पर पहले भी हो चुकी हैं कार्यवाहियां?
- डीओ घोटाले का पूरा नेटवर्क: खरीदी केंद्र प्रभारी, कर्मचारी एवं अधिकारियों की भूमिका पर सवाल?