
सिकासार जलाशय का पानी : महासमुंद जिले में श्रेय लेने की होड़…. वहीं गरियाबंद जिले के किसानों ने दी आंदोलन की चेतावनी…
सिकासार जलाशय का : सवाल नहीं, अस्तित्व की लड़ाई है यह: गरियाबंद के किसानों का ऐलान “
“जब तक गरियाबंद जिले के किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंचेगा, एक बूंद भी बाहर नहीं जाने देंगे”
:गरियाबंद के किसानों ने दी आंदोलन की चेतावनी, कहा – अब और नहीं सहेंगे पानी की लूट
“कमार- भुंजिया की धरती से अधिकार छीनने की साजिश का पर्दाफाश”
गरियाबंद | छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मलेवा अंचल में किसान एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं। इस बार मुद्दा सिर्फ सिंचाई का नहीं, बल्कि क्षेत्रीय हक़, जल अधिकार और राजनीतिक छल के खिलाफ़ विद्रोह का है।
सिकासार जलाशय, जो कि गरियाबंद जिले की भूमि पर वर्षों पहले बना था, उसका जल आज भी इस क्षेत्र के खेतों को नसीब नहीं हुआ।
अब जब इसी जलाशय से महासमुंद जिले के कोडार जलाशय तक पानी ले जाने की योजना पर काम तेज़ हो रहा है, किसानों का धैर्य टूट चुका है।
2600 करोड़ की डीपीआर और श्रेय लेने की होड़
इस योजना के तहत सिकासार से कोडार जलाशय तक पानी पहुंचाने के लिए 2600 करोड़ की डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) प्रशासनिक स्तर पर मंजूर हो चुकी है।
वहीं इस परियोजना को लेकर महासमुंद जिले के पूर्व और वर्तमान राजनितिज्ञ व प्रतिनिधि, अलग-अलग मंचों से श्रेय लेने में जुटे हुए हैं।
विडंबना देखिए:
जिस जलाशय का निर्माण गरियाबंद की भूमि पर हुआ, वहीं के किसानों को आज तक उसकी एक बूंद भी नसीब नहीं, और अब उनका जल भी उनके सिर पर से राजनीतिक लाभ के लिए छीनने की तैयारी हो चुकी है।
यह सीधा-सीधा विकास के नाम पर जल संसाधनों का राजनीतिक दोहन है।
कमार व भुंजिया जैसी विशेष जनजातियों की भूमि से छल
गरियाबंद जिला विशेष अनुसूचित जनजाति – कमार और भुंजिया समुदायों का प्राकृतिक और सांस्कृतिक आश्रय स्थल रहा है।
ये समुदाय विकास की दौड़ में सबसे पीछे छोड़ दिए गए, जिनके अधिकारों और संसाधनों की रक्षा के लिए कभी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्री राजीव गांधी स्वयं कुल्हाड़ी घाट पहुँचे थे।
स्व. श्री गांधी की वह यात्रा सिर्फ एक राजनीतिक दौरा नहीं थी, वह आदिवासी समाज के साथ आत्मीयता और विकास के प्रत्यक्ष वादे का प्रतीक थी।
लेकिन आज, उसी भूमि के संसाधनों पर बाहरी राजनीतिक हस्तक्षेप और जनजातीय समुदाय की उपेक्षा राजीव गांधी की भावना का साफ़ अपमान है।
पीपरछेड़ी की बैठक: किसानों का आक्रोश फूटा
25 मई को पीपरछेड़ी विश्राम गृह में मलेवा अंचल किसान संघ की अगुवाई में बड़ी बैठक हुई, जिसमें विधायक जनक ध्रुव, जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम, क्षेत्रीय जनपद सदस्य, सरपंच, सामाजिक कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए।
बैठक में स्पष्ट रूप से निर्णय लिया गया कि –
“अब इस क्षेत्र के किसानों को यदि सिंचाई सुविधा नहीं दी जाती, तो सिकासार जलाशय से बाहर एक बूंद पानी भी नहीं जाने दिया जाएगा।”
🚩 प्रशासन पर वादाखिलाफी का आरोप
किसानों ने बताया कि पूर्व में पीपरछेड़ी में जो बैठक हुई थी, उसमें एक डेलिगेशन को संबंधित अधिकारी से मिलने भेजा गया था। लेकिन उस मुलाकात के बाद जो जानकारी दी गई, उसके अनुरूप कार्य नहीं हुआ।
किसानों ने साफ तौर पर कहा – “हमारे साथ छल किया गया है।”
अब किसानों का कहना है कि वे पहले राजधानी रायपुर जाकर संबंधित विभाग के मंत्री से मिलेंगे, और यदि मांग पूरी नहीं होती तो सड़कों पर उतरकर आंदोलन छेड़ेंगे।
जनप्रतिनिधियों का समर्थन


विधायक जनक ध्रुव ने कहा कि इस विषय को वे आगामी मानसून सत्र में विधानसभा में उठाएंगे, और किसानों के साथ हर स्तर पर खड़े रहेंगे।
संजय नेताम, जिला पंचायत सदस्य, ने कहा –
“यह राजनीतिक लाभ की परियोजना है, जिसमें गरियाबंद के किसानों को सिर्फ नजरअंदाज ही नहीं किया जा रहा, बल्कि उनके जल अधिकारों को छीनने की साजिश हो रही है। हम चुप नहीं बैठेंगे।”

महत्वपूर्ण बिंदु एक नजर में:
- सिकासार जलाशय गरियाबंद जिले में स्थित, लेकिन पानी बाहर भेजने की योजना ।
- 2600 करोड़ की डीपीआर मंजूर, किसानों को अब तक सिंचाई नहीं
- महासमुंद जिले कुछ राजनीतिज्ञ लगे श्रेय की होड़ में
- कमार और भुंजिया जैसे जनजातीय समुदायों की उपेक्षा
- स्व.राजीव गांधी की कुल्हाड़ी घाट यात्रा और आदिवासी वादे का अपमान
- किसानों ने रायपुर जाकर मंत्री से मिलने और फिर आंदोलन का एलान किया
- “जब तक गरियाबंद को पानी नहीं, तब तक बाहर पानी नहीं”
यह लड़ाई अब सिर्फ खेतों की सिंचाई की नहीं रही — यह लड़ाई है सामाजिक न्याय, क्षेत्रीय अधिकार, आदिवासी अस्मिता और राजनीतिक ईमानदारी की।
गरियाबंद के किसान अब खुलकर कह रहे हैं —
“हमारे हिस्से का पानी, हमारे हिस्से की ज़मीन पर बना बांध – और फिर भी हमें ही वंचित किया जा रहा है? अब नहीं!”
अब ये किसान सिर्फ पानी नहीं मांग रहे — वे अपने हिस्से का भविष्य मांग रहे हैं।