
116 गांवों की पशुसेवा पर “फाइलीय चाबुक”
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7 साल से डॉक्टर ज्वाइन नहीं कर रही, और सरकार आंख मूंदे बैठी है
📍 महासमुंद, छत्तीसगढ़।
छत्तीसगढ़ के कोमाखान क्षेत्र में सरकारी पशुधन व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। 116 गांवों में न इलाज है, न टीकाकरण, न कृत्रिम गर्भाधान — बस एक सहायक और तमाशबीन प्रशासन है।
डॉ. ज्योत्सना पटेल को साल 2017 से “पदस्थ” मान लिया गया, लेकिन वे कभी ज्वाइन ही नहीं कीं! रायपुर में बैठकर हर महीने वेतन उठाया जा रहा है, और इधर गांवों में मवेशी तड़प-तड़पकर मर रहे हैं।
⚠️ फाइल में तैनाती, मैदान में गायब — यही है छत्तीसगढ़ की पशुधन सेवा!
कोमाखान पशु चिकित्सालय में डॉ. ज्योत्सना पटेल की “कागजी उपस्थिति” पिछले सात वर्षों से जारी है। वह रायपुर की किसी लैब में अटैच हैं, जहां बैठकर बिना ड्यूटी निभाए हजारों रुपये का वेतन हर महीने उठा रही हैं।
👉 वास्तविकता यह है:
- जिम्मेदारी शून्य,
- सेवा अनुपस्थित,
- नियुक्ति “नाटक”,
- और वेतन पूरी तरह चालू।
🧑⚕️ 116 गांवों की सेहत का भार एक अकेले सहायक के कंधों पर!
कोमाखान में वर्तमान में केवल सहायक चिकित्सा अधिकारी रोहित साहू सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने स्वीकार किया:
“सर्जन नहीं होने से पोस्टमार्टम, टीकाकरण, गर्भाधान जैसी सारी तकनीकी सेवाएं पूरी तरह ठप हैं। गांवों से रोज शिकायतें आती हैं, लेकिन हम असहाय हैं।”
📊 जमीनी हकीकत – ये सेवाएं हुई बर्बाद:
सेवा | स्थिति |
---|---|
टीकाकरण | अधूरा, रुक-रुक कर |
इलाज | नाममात्र |
कृत्रिम गर्भाधान | लगभग बंद |
पोस्टमार्टम | ठप |
प्रशिक्षण | औपचारिकता भर |
📂 “फाइल” में पोस्ट भरी, इसलिए “नई भर्ती नहीं!” — क्या यही है व्यवस्था?
यह सबसे क्रूर मज़ाक है उन गांवों के साथ जो डॉक्टर के इंतजार में बीते सात सालों से दम तोड़ रहे हैं। सरकारी फाइलों में पोस्ट भरी मानी गई है, इसलिए नई नियुक्ति नहीं की जा रही! यह नियम नहीं, जनविरोधी मानसिकता का प्रतीक बन चुका है।
प्रशासन ने पल्ला झाड़ा, शासन बना मूक दर्शक
महासमुंद की डीडीओ डॉ. अंजना नायडु ने कहा:
“हमने शासन से बार-बार आग्रह किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। हमारे पास कुछ करने की शक्ति नहीं है।”
तो फिर सवाल यह है — जिम्मेदार कौन है? शासन, संचालालय या पूरी व्यवस्था?
जब सरकार ही धोखा दे, तो न्याय की उम्मीद किससे?
छत्तीसगढ़ सरकार भले ही अखबारों में दावे करे कि “पशुपालकों की आय बढ़ाएंगे”, लेकिन कोमाखान जैसे सैकड़ों गांव उस खोखले प्रचार की सड़ी हुई सच्चाई हैं। यहां के मवेशी बिना दवा के मर रहे हैं, और सरकार रायपुर की आरामगाहों में बैठकर आंकड़े गढ़ रही है।
क्या अब भी कुंभकर्णी नींद में रहेगा शासन?
यह सवाल अब ग्रामीण नहीं, पूरा प्रदेश पूछ रहा है:
👉 कब तक एक “गैरहाज़िर डॉक्टर” फाइलों में तैनात मानी जाती रहेगी?
👉 कब तक शासन मूकदर्शक बनकर लापरवाही की ढाल बने रहेगा?
👉 क्या पशुपालकों की जानवरों की जान की कोई कीमत नहीं है?
अब यह तमाशा बंद होना चाहिए। जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो, नियुक्ति हो, या फाइलों में दफन होती सेवाओं पर जन आक्रोश उठ खड़ा होगा।