Kawardha

पोंडी में भगवान जगन्नाथ की निकली गई भव्य यात्रा

क्षेत्रवासीयों को हुआ पोंडी में जगन्नाथ पुरी का अहसास

पोंडी : पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म में आस्था र्झने वालों के लिए बहुत बड़ा त्यौहार माना जाता है। वही भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए लाखों भक्त लालाहित रहते हैं। ऐसे में बोड़ला ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पोंडी में प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी भगवान जगन्नाथ की भव्य यात्रा निकाली गई।इस यात्रा में ग्राम एवम् आस पास क्षेत्र के नवयुवक भी शामिल हुए,बता दे की यह भव्य यात्रा मां शीतला मंदिर समिति,विश्वहिंदू परिषद एवम् बजरंगदल द्वारा आयोजित किया गया था। जिसमे भगवान जगन्नाथ को शिव मंदिर पोंडी से रथ में विराजित कर के पूरे गांव में डी.जे के साथ घुमाया गया,पूरे गांव में भगवान जगन्नाथ को एक एक घर में सामने से घुमा के एवम् ऐसे बुजुर्ग जन जो घर से निकलने में असमर्थ होते है ऐसे बुजुर्गो को स्वयं भगवान जगन्नाथ ने उनके घर के सामने पोंडी के युवाओं के द्वारा आए और स्वयं दर्शन दिया इसके बाद यात्रा को मां शीतला मंदिर पोंडी में ला के जगन्नाथ रथ यात्रा को विराम दिया गया। इस पूरे यात्रा में गणेश श्रीवास,प्रकाश साहू,विजय साहू,कान्हा गुप्ता,अमन ठाकुर,महेश निषाद,रवि निषाद,अमन वर्मा,लल्ला यादव,तेजस्वी साहू,मोंटू निषाद,चुरावन साहू,गोलू श्रीवास, हैरी श्रीवास,मनमोहन श्रीवास राहुल गुप्ता, अरुण गोस्वामी,राहुल नामदेव,मनीष कुंभकार,राजा गोशवामी,अनिल कुंभकार,रामभरोश यादव,सुजीत गुप्ता,आनद निषादमिलन साहू, बबलू साहू,संजय साहू, रामू यादव अन्य ग्रामीण एवम् क्षेत्रवासी उपस्थित रहे।

आपको बता दें कि,बहुत से लोगो के मनन मन में प्रश्न होता है की आखिर रथ यात्रा में पीछे कोई कारण है भी या नहीं तो उनको संवादाता आयुष्मान तिवारी के द्वारा बताया जा रहा है की दरअसल पुरी की रथ यात्रा के पीछे बहुत साी कहानियां प्रचलित हैं। जिनमें से एक है कि एक बार श्रीकृष्ण, जो कि जगन्नाथ के रूप में पुरी मंदिर में विराजते हैं, से उनकी छोटी बहन सुभद्रा कहती हैं कि वो द्वारिका दर्शन करना चाहती हैं लेकिन सड़क मार्ग से। भगवान श्रीकृष्ण अपनी छोटी बहन की इच्छा का सम्मान करते हैं और तुरंत हांमी भर देते हैं।अपने दोनों छोटे भाई-बहनों की बातें बड़े भईया बलराम सुन रहे थे तो उन्होंने कहा कि ‘मैं भी चलूंगा’, जिसे सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘दाऊ हम आपके बिना कैसे जा सकते हैं?आप ही तो हमारे मार्गदर्शक हो।’ इसके बाद बलराम, सुभद्रा और श्रीकृष्ण तीनों ने रथ के जरिए ये यात्रा पूरी की थी, तब से ही रथ यात्रा प्रारंभ हो गई।

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