
अब केवल 20 घंटे में सीखिए संस्कृत बोलना!” बेमेतरा में संस्कृत का अनोखा शिविर…..
“कॉलोनीवासियों में दिखा ज़बरदस्त उत्साह
बेमेतरा।
संस्कृत अब केवल विद्वानों या शास्त्रों की भाषा नहीं रही — बल्कि जन-जन की भाषा बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर है। इसी उद्देश्य को लेकर “संस्कृत भारती छत्तीसगढ़” के बेमेतरा जिला संयोजक डॉ. नीलेश कुमार तिवारी के नेतृत्व में दीनदयाल उपाध्याय कॉलोनी, दुर्ग रोड, बेमेतरा में 20 जून से 29 जून तक संस्कृत संभाषण शिविर का आयोजन किया गया है।
यह 10 दिवसीय शिविर पूर्णतया निशुल्क है और हर दिन सायं 5:00 बजे से 7:00 बजे तक कॉलोनीवासियों को संस्कृत बोलने का सीधा अभ्यास करवाया जा रहा है। खास बात यह है कि इसमें किसी भी उम्र के महिला-पुरुष उत्साहपूर्वक भाग ले सकते हैं — और आज की तारीख़ में 20 से अधिक प्रतिभागी रोज़ाना हिस्सा लेकर संस्कृत में संवाद करने की कला सीख रहे हैं।
संस्कृत को जनभाषा बनाने का लक्ष्य
डॉ. नीलेश तिवारी बताते हैं कि संस्कृत भारती का उद्देश्य है — संस्कृत को गांव-गांव, गली-गली तक पहुंचाकर जनभाषा बनाना। इसी दिशा में तैयार किया गया है ऐसा सरल और बोधगम्य पाठ्यक्रम, जिसे मात्र 10 दिनों में, रोज़ 2 घंटे अभ्यास करके कोई भी व्यक्ति धाराप्रवाह संस्कृत बोलना सीख सकता है।
संस्कृत: ज्ञान की जननी भाषा
डॉ. तिवारी ने बताया कि संस्कृत को “सभी भाषाओं की जननी” यूँ ही नहीं कहा जाता। प्राचीन काल में यह केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं थी, बल्कि प्रशासन, शिक्षा, न्याय, विज्ञान, गणित, राजनीति, मनोविज्ञान, वास्तु, रसायन, शिल्प, ज्योतिष व अर्थशास्त्र जैसे विषयों की प्रमुख भाषा रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि संस्कृत साहित्य में इतने गूढ़ विषय समाहित हैं, जिनका मूल्य आज विश्वभर में पुनः समझा जा रहा है — तभी तो जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका जैसे देशों में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक संस्कृत पढ़ाई जा रही है।
29 जून को होगा समापन
इस संपूर्ण आयोजन का समापन समारोह आगामी रविवार, 29 जून को बड़े उत्साह और गरिमा के साथ आयोजित किया जाएगा, जिसमें प्रतिभागियों की उपलब्धियों को सम्मानित किया जाएगा।
बेमेतरा में संस्कृत की गूंज
बेमेतरा की दीनदयाल कॉलोनी में इन दिनों हर शाम संस्कृत की गूंज सुनाई देती है — “कथं भवति?”, “मम नाम राजेशः”, “भवान् कुशलः अस्ति किम्?” जैसे संवाद अब कॉलोनी के आम जन भी सहजता से बोलने लगे हैं। यह नज़ारा दर्शाता है कि यदि भाषा का प्रशिक्षण भाव से, संकल्प से और सहज पद्धति से दिया जाए तो संस्कृत जैसी “प्राचीन” कही जाने वाली भाषा भी आधुनिक जीवन का हिस्सा बन सकती है।