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बीसीएस शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धमतरी में मूट कोर्ट का सफल आयोजन ।

BNS और BNSS 2023 की धाराओं पर आधारित मामलों की सुनवाई ।

धमतरी । बीसीएस शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धमतरी में प्रभारी प्राचार्य श्रीमति हेमवती ठाकुर के मार्गदर्शन में मूट कोर्ट अर्थात आभासी न्यायालय का प्रभावी आयोजन किया गया। इस आयोजन में श्रीमति ग्रेस कुजर, विधि विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दुर्गेश प्रसाद, मूट कोर्ट समन्वयक श्रीमती गायत्री लहरे, डा. सपना ताम्रकार, प्रोफेसर पंकज जैन, प्रोफेसर कोमल प्रसाद यादव और डा. प्रेमनाथ भारती की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

पहला मामला भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 103 के तहत हत्या का काल्पनिक प्रकरण

पहले मामले में हत्या से संबंधित काल्पनिक प्रकरण को सत्र न्यायाधीश अमोघ दीवान की अदालत में प्रस्तुत किया गया। आयोजन पक्ष की अधिवक्ताओं वर्षा निर्मलकर, लता मरकण्डे, गगन जादव, केशव साहू, सिद्धि पटेल, युवराज, मनीष साहू और एकता धीवर हितेश ने मामले के तथ्य प्रस्तुत किए।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि अभियुक्त का एक तलाकशुदा महिला से अनैतिक संबंध था। बाद में उसे महिला के किसी अन्य पुरुष से संबंध होने की आशंका हुई, जिसके चलते चरित्र संदेह में उसने डंडे से हमला कर महिला की हत्या कर दी।

न्यायालय में हत्या का आरोप तय होने के बाद भी अभियुक्त ने अपराध स्वीकार नहीं किया और स्वयं को निर्दोष बताते हुए विचारण की मांग की।इसके बाद बचाव पक्ष के अधिवक्ता धनेंद्र साहू, तेजल, दानिश, ऋषि, मनीषा, तनुज, साक्षी, भावना और निधि ने अपने तर्क व गवाहों के बयान प्रस्तुत किए।

न्यायालय ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का परीक्षण किया और पाया कि अभियोजन पक्ष अभियुक्त के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा। परिणामस्वरूप न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया।

दूसरा मामला BNSS 2023 के धारा 144 के तहत भरण पोषण का वाद

दूसरे मामले की सुनवाई परिवार न्यायालय की न्यायाधीश सुश्री अमेरिका पैकरा के समक्ष हुई। इस मामले में आवेदिका ने अपने पति से स्वयं और छह वर्षीय बच्चे के भरण पोषण की मांग की। आवेदिका अपने बच्चे के साथ मायके में रह रही थी।पति ने पूर्व में निजी नौकरी करने की बात कही, लेकिन वर्तमान में बेरोजगार होने का हवाला दिया। न्यायालय ने पाया कि आवेदिका शिक्षित और सक्षम है, इसलिए उसे स्वयं के भरण पोषण की आवश्यकता नहीं है।न्यायालय ने दोनों पक्षों के तर्क, गवाहों और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करते हुए आवेदिका के आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार किया। न्यायालय ने आदेश दिया कि पति बच्चे की देखभाल और शिक्षा के लिए प्रति माह पांच हजार रुपये की राशि बच्चे के अठारह वर्ष की आयु तक देगा। साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि परिस्थितियों के अनुसार इस राशि में वृद्धि संभव है। आवेदिका की स्वयं के भरण पोषण की मांग को न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया।दीवानी प्रकरण में आवेदिका की ओर से अधिवक्ता प्रियांशी, ऋषि, सोनाली और शिवानी थे, जबकि अनावेदक की ओर से अधिवक्ता मनीष, निधि, साक्षी जैन, सिद्धि, ऐश्वर्या और दिशा उपस्थित थे। मामले के विवेचक तरुण नागवंशी थे तथा गवाह की भूमिका में एलएलबी तृतीय वर्ष प्रथम सेमेस्टर के विद्यार्थी शामिल रहे।इस अवसर पर श्रीमती जयश्री पंचांगम, भीखम साहू, अधिवक्ता शंकर देवांगन, कुशल चोपड़ा सहित विधि विभाग के विद्यार्थी और अभिभावक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।मंच संचालन पल्लवी जायसवाल और उपेंद्र साहू ने किया।यह मूट कोर्ट आयोजन विद्यार्थियों को न्यायिक प्रक्रिया की व्यावहारिक समझ प्रदान करने के उद्देश्य से अत्यंत सफल एवं शिक्षाप्रद सिद्ध हुआ।

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